परमपिता की भूमिका

भौतिक लोक में इंसान का जीना आसान हो सके, वह समझ सके कि इस लोक में उसे करना क्या है, और उसका मुझसे मेल आसानी से हो सके – इसी के लिए जिस लोक में लोग आज रह रहे हैं, उसकी रचना, उसकी व्यवस्था मैं समझा रहा हूँ, और साथ ही उस आध्यात्मिक लोक की संरचना भी जिसमें इस ऐहिक संसार की यात्रा के पश्चात लोग अपने को पाएंगे|

अपनी इस वार्ता में मैं, परमेश्वर, रूस में अपने सहायक के ज़रिए धरती के सभी लोगों तक यह जानकारी पहुंचा रहा हूँ कि धरती पर सामाजिक स्थिति कैसी है और यहाँ इंसान क्या कुछ करने की क्षमता रखता है|

मैं चेतावनी दे रहा हूँ: मानवजाति के सिर पर सर्वनाश का खतरा मंडरा रहा है, और साथ ही यह भी समझा रहा हूँ कि आध्यात्मिक लोक के नियमों के बारे में लोगों को जो ज्ञान मैं दे रहा हूँ उसकी बुनियाद पर न्यायशील सामाजिक सम्बन्ध बनाने और सत्ता का पिरामिड खड़ा करने से उनके सामने कैसे भविष्य के द्वार खुलते हैं|

अपने चुने व्यक्ति के साथ मेरी वार्ता के रूप में पेश किए जा रहे इन वचनों द्वारा मैं बड़ी संख्या में लोगो के सामने धीरे-धीरे अपने ज्ञान का भण्डार खोलना चाहता हूँ, आखिर लोगों का सुख उन्हीं के हाथों में है|

मनुष्य जब यह जान लेता है और समझ लेता है कि इस भौतिक लोक में वह किसलिए आया है, तब जाकर ही उसके लिए यह स्पष्ट हो पाता है कि मानव-जीवन की सार्थकता क्या है और यह जीवन अपने में कैसी क्षमताएं छिपाए हुए है|

इस पुस्तक की वार्ताएं पढ़कर थोड़े समय में ही हर पाठक नया विवेक, नई मेधा पाएगा, उसे अपने व्यक्तित्व के विकास के मार्ग पर बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी, जिससे इस भौतिक लोक में उसका रह पाना आसान होगा और वह आध्यात्मिक लोक की दहलीज पर मुझसे भेंट के लिए तैयार हो सकेगा|

इन वार्ताओं के परामर्शों और ज्ञान के एक अंश-मात्र का ही उपयोग कर लेने पर मनुष्य धरती पर अपने अल्प जीवन में सही दिशा-बोध पा सकेगा और इस जीवन का प्रयोजन समझ सकेगा|

प्रतिनिधि (लिपिकार) की भूमिका

मानवजाति के लिए अधिवर्ष (लीप ईयर) सदा विशेष अर्थ रखते हैं| इन वर्षों में अक्सर ऐसी घटनाएं होती हैं जो इस धरती पर जी रहे हर इंसान के जीवन-चक्र को बदल देती हैं या उसमें बदलाव के बीज बो देती हैं|

नए युग के लोगों के लिए ईश्वर की वार्ता अधिवर्ष में ही उस भविष्य की नींव पड़ती है जो हमारे लिए तो अदृश्य होता है, लेकिन हमारे परमपिता परमेश्वर के वश में होता है|

वर्ष 2004 की बात है, लम्बे रूसी जाड़े से पहले पेड़ पौधे अपना पीला पड़ गया परिधान उतार रहे थे| ऐसे पतझड़ में, शरद ऋतु में मेरे दिमाग में अनायास ही कुछ विचार आने लगे और ऐसे विषय के पाठ का रूप लेने लगे जिससे मैं बिलकुल परिचित नहीं था| ये पाठ चार मास तक आते रहे| इन्होंने आखिर इस आश्चर्यजनक पुस्तक का रूप ले लिया जिसमें नई शताब्दी के आरम्भ में सृजनहार हम धरतीवासियों से सीधे बात कर रहे हैं|

इस पुस्तक के बारे में जो कुछ कहा जा सकता है वह इसके पाठ में है|

मैंने तो बस सृजनहार की आज्ञा का पालन करते हुए इसे प्रकाशन के लिए तैयार किया है और इसका शीर्षक “नए युग के लोगों के लिए ईश्वर की वार्ता” रखा है|

प्रतिनिधि परिचय:

अकादमीशियन लेओनीद इवानोविच मास्लोव (डी०एससी०)

ठोस पिंड भौतिकी, वित्तीय और बैंक प्रविधियों तथा पृथ्वी की इकोलोजी की समस्याओं पर 200 से अधिक लेख एवं पुस्तकें प्रकाशित|